“तेजाब से आवाज बुझा देंगे!” -TMC विधायक Abdur Rahim का वर्जन 2.0

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

पश्चिम बंगाल की राजनीति फिर से हाई वोल्टेज मोड में आ गई है। TMC विधायक अब्दुर रहीम बक्शी ने शनिवार को एक जनसभा में जो बोला, उसे सुनकर माइक भी सहम गया।

“अगर किसी ने बंगाली प्रवासी मजदूरों को दोबारा ‘बांग्लादेशी’ या ‘रोहिंग्या’ कहा, तो उनके मुंह में तेजाब डाल दूंगा।”

– अब्दुर रहीम बक्शी, मालदा सभा में

अब चाहे माइक गल गया हो या बयान वायरल हुआ हो, बंगाल की गर्म हवाओं में ये धमकी तेल में आग का काम कर गई है।

Shankar Ghosh पर सीधा हमला, लेकिन नाम नहीं लिया!

बक्शी ने अपने भाषण में नाम नहीं लिया, लेकिन BJP विधायक शंकर घोष का जिक्र इशारों में ही काफी साफ था। सभा में उन्होंने कहा कि जो लोग 30 लाख बंगाली प्रवासी मजदूरों को विदेशी कहते हैं, वो “बेशर्म” हैं और उन्हें “सिखाया” जाएगा। अब सिखाने का तरीका क्या होगा?

नेताजी बोले – “तेजाब से आवाज राख कर दूंगा!”

राजनीति या रिएलिटी शो? नेताजी के बयानों का पुराना रिकॉर्ड!

ये कोई पहली बार नहीं है जब अब्दुर रहीम बक्शी के बयान ने सुर्खियां बटोरी हों।
इससे पहले भी उन्होंने:

हाथ-पैर काटने की धमकी दी,

विपक्षी नेताओं को “ठीक कर देने” की बात की,

और अब, तेजाब से मुंह “राख” करने की धमकी देकर स्क्रिप्ट पूरी कर दी।

पार्टी में क्या है नया कैंपेन?

“Vocal for Local, Aggressive for Opponents”?

https://twitter.com/i/status/1964554174563307670

कब-कब नेताओं ने बदले माइक को हथियार में?

भारतीय राजनीति में ‘जुबानी जंग’ नई नहीं है। लेकिन जब माइक से आवाज के बदले तेजाब फेंकने की धमकी आए, तो ये सिर्फ बयान नहीं, एक राजनीतिक रियलिटी शो जैसा लगता है।

अब सवाल ये नहीं कि क्या नेता सजा पाएंगे, सवाल ये है कि अगला बयान किसका होगा, और कौन बनेगा ‘बयानवीर ऑफ द वीक’?

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BJP की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई है। शंकर घोष ने राज्यपाल और पुलिस से शिकायत दर्ज करने की बात कही है और इस बयान को “क्रिमिनल इन्टिमिडेशन” करार दिया।

“ये सीधा-सीधा क्राइम है, और नेता जी को कानून का सामना करना पड़ेगा।”
– BJP स्पोक्सपर्सन

सियासत में जुबान की तलवार, तेजाब बन गई है?

लोकतंत्र में भाषण शक्ति होती है, लेकिन जब वो धमकी बन जाए, तो जनता पूछती है – “ये नेता हैं या नेगेटिव रील्स के क्रिएटर?”

पश्चिम बंगाल की राजनीति में अब सवाल विकास बनाम विवाद का नहीं, बल्कि “वक्तव्य बनाम वैचारिक पतन” का बनता जा रहा है।

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